ललित विश्वकर्मा / बांदा(उ.प्र.)। गिरवा से चंद कदम दूर खत्री पहाड़ की मां विंध्याचल के श्री चरणों में भक्तों की अटूट आस्था है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में दर्शनार्थियों का जमावड़ा लगता है। पूज्य स्थल के निकटवर्ती गांव और कस्बे के आस्था वान ही नहीं बल्कि दूर के नगर और महानगरों से श्रद्धालुओं का यहां तांता लगता है। मान्यता है कि द्वापर में जब माता देवकी की आठवी संतान समझ कंस ने पटकने की कोशिश की तब शक्ति स्वरूपिणी मां विंध्यवासिनी आकाश की ओर उड़ गई थी। इसके पश्चात खत्री पहाड़ में विराजी तो पर्वत डोलने लगा इससे रूष्ट होकर मातारानी ने पर्वत को श्राप दिया कि कोढ़ी हो जा तभी से ये पहाड़ खत्री पहाड़ से प्रख्यात हो गया। क्षेत्रवासियों का कथन है कि सहृदय की गई भक्ति और मां की आराधना से सभी की मिन्नते पूर्ण होती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता की भेंट नारियल द्वजा पान बताशा लाल चुनरी चढ़ाते है। मंदिर परिसर के निकट रहने वाली आरती और मुस्कान चौरसिया कहती है कि अष्टमी और नवमी बहुत दूर नगरों और महानगरों से श्रद्धालुओं का यहां हुजूम लगता है। माता विंध्याचल के दर्शन से श्रद्धालु कृतार्थ होते है। मां की ड्योढ़ी में माथा टेक लोग खुशहाल होते है।
मां विंध्यवासिनी खत्री पहाड़ श्रद्धालुओं के अटूट आस्था का केंद्र