सागर। संस्कृति संचालनालय भोपाल के सहयोग से लोक कला निकेतन सोशल वेलफेयर सोसायटी सागर द्वारा लोक पारंपरिक कलाओं पर आधारित गरिमामय कार्यक्रम सिविल लाइंस स्थित कांची सभागृह में श्यामलम सागर के संयोजकत्व में आयोजित किया गया. इस अवसर पर कार्यक्रम के प्रथम चरण में मुख्य अतिथि डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने कहा कि लोकसंगीत ज्ञान परंपरा का बुनियादी संवाहक हैं। लोक कलाओं का जन्म लोक से होता है। इसीलिए इन कलाओं में परंपराएं, जातीय स्मृतियां एवं लोकाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान के रूप में हस्तांतरित होती रहती है। और जब हम लोकपर्व मनाते हैं तो इसका अर्थ होता है कि हम लोक की ज्ञान परंपरा का उत्सव मनाते हैं, उसका पोषण करते हैं, उसका संरक्षण करते हैं। लोक पर्व 2025 वस्तुतः लोक परंपरा के संरक्षण का उद्घोष है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बुंदेली के विद्वान सुप्रसिद्ध रंगकर्मी राजेंद्र दुबे कलाकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि भाषा या बोली को हम अपने तरीके और सहूलियत के अनुसार भी बना लेते है. नए शब्दों को अपनी भाषा बोली में अनुवाद कर लेते है. डूबते हुए, या डूब चुके शब्दों की जगह नए अनुसार बदलते हैं. दूसरी भाषाओं में भी शब्दों को इस तरह पिरोते हैं कि आम आदमी समझ सके.एक कहानी या कविता में कई भाषाओं के शब्द ज़रूरत के अनुसार प्रयुक्त किये जाते रहे हैं.लोक गीत, लोक संगीत, लोक नृत्य, लोक नाट्य में भी समयानुसार अपने आप बदलाव को स्वीकार किया जाता हैं. कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सत्यम बुंदेली संग्रहालय सागर के संस्थापक अध्यक्ष दामोदर अग्निहोत्री में इस अवसर पर अपने वक्तव्य में संग्रहालय में उपलब्ध महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक बुंदेली साहित्य, वाद्य यंत्रों आदि के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देते हुए बुंदेलखंड की महिमा को उल्लेखित किया. अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के पूजन अर्चन व वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. श्रीमती अर्चना प्यासी ने मधुर गणपति वंदना से प्रभावित किया.
आयोजक संस्था लोक कला निकेतन के अध्यक्ष अतुल श्रीवास्तव ने स्वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम की भूमिका और उद्देश्य पर प्रकाश डाला.कार्यक्रम के द्वितीय चरण में आकाशवाणी के ए ग्रेड प्राप्त सुप्रसिद्ध बुंदेली गायक शिव रतन यादव द्वारा बुंदेली गीतों की मधुर प्रस्तुति दी गई.
उनके साथ आकाशवाणी गायक कपिल चौरसिया ने भी अपने गायन से लोगों को भाव विभोर कर बुंदेली के रस में डुबो दिया.कार्यक्रम का व्यवस्थित और सुचारू संचालन
आकाशवाणी कलाकार सतीश साहू ने किया तथा रचना तिवारी ने आभार व्यक्त किया.इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्य संस्कृति से जुड़े हुए बुंदेली प्रेमी उपस्थित रहे जिनमें एल एन चौरसिया,डॉ गजाधर सागर, डा राजेश, हरिसिंह ठाकुर,डा श्याम मनोहर सिरोठिया, आरके तिवारी, अंबिका यादव, अरुण दुबे,के एल तिवारी,पूरन सिंह राजपूत,कुंदन पाराशर, रविन्द्र दुबे कक्का, वीरेंद्र प्रधान, एम के खरे,एम शरीफ, डा नरेंद्र प्यासी,संतोष पाठक, डा नलिन जैन, एम के खरे, प्रभात कटारे,प्रदीप पाण्डेय, पुष्पेंद्र दुबे,सौरभ दुबे, सुनील प्रजापति,पवन रजक नरयावली, हर्षिता सिंह,आशीष खटीक, रितेश चौरसिया, मयंक तिवारी, प्रेम स्वरुप तिवारी, दीपाली शर्मा, मणिदेव सिंह ठाकुर, राजीव जाट आदि के नाम उल्लेखनीय हैं.
लोक पर्व 2025 वस्तुतः लोक परंपरा के संरक्षण का उद्घोष है – डॉ शरद सिंह