Headlines

सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर ज्ञात अज्ञात पितरों को जलांजलि सह तर्पण सनातनी परंपरा- पंडित महेश दत्त त्रिपाठी

शेयर करें

भारतीय ऋषियों मनीषयों ने अपने तपोवल के माध्यम से महत चेतना को अंतःकरण में सूक्ष्म शक्तियों को जागृत कर उन्हें प्रसन्न करके मनचाहा आशीर्वाद प्राप्त करने विशेषज्ञ अनुष्ठान कर्मकांड का निरूपण किया। गायत्री परिवार में सतत कर्मकांड करा रहे धर्माचार्य पंडित महेश दत्त त्रिपाठी ने बताया कि अपने दिवंगत पूर्वजों जिन्हें पितर या पितृ कहा गया है हम सभी के जीवन में हमारे पूर्वजों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि उनकी प्रसन्नता आशीर्वाद से हमारा जीवन शांत, खुशहाल और संतति की उन्नति के साथ यश कीर्ति मे वृद्धि होती है हिंदू परंपरा में आश्विन माह का कृष्ण पक्ष अपने पितरों को प्रसन्न करने निर्धारित है आचार्य त्रिपाठी बताते हैं कि प्रतिदिन तर्पण करने गायत्री शक्तिपीठ गोपालगंज आने वाले श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम व्यास पीठ पर बैठे आचार्य को पुनीत परंपरा के साथ व्यास पीठ नमन करना होता है तदोपरांत ईश्वरीय अंश दिव्य चेतन प्रवाह के प्रतीक गुरुदेव की गुरु वंदना मंत्र उच्चारण के साथ हाथ जोड़कर की जाती है जिससे सनातन गौरव की रक्षा हो सके फिर वाणी की देवी मां सरस्वती की वंदना, पवित्रकरण, मंगलाचरण, आचमन, भारतीय धर्म की ध्वजा शिखा बंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी पूजन, संकल्प, यज्ञयोपैवित धारण, चंदन धारण, कलश पूजन सामूहिक रूप से किया जाता है। आचार्य पंडित त्रिपाठी ने बताया कि जल से भरा कलश विराट ब्रह्मा का ब्रह्मांड यानि का सृजन का प्रतीक है। साधकों के मन में जल जैसी शीतलता, शांति सद्भाव के संचरण हेतु वेद मंत्र के साथ कलश स्थित देवताओं की पूजा प्रार्थना दीप पूजन के बाद विघ्न विनाशक श्री गणेश, वेद माता गायत्री गुरु गुरु सत्ता का आवाहन, सर्व देव नमस्कार, सोडासोपचार पूजन, स्वस्तिवाचन, यम देवता पूजा प्रार्थना, पितृ आवाहन पूजन, वेदोक्त शास्त्रों विधि से करते हैं फिर पितरों की तृप्ति के लिए जलांजलि से सर्वप्रथम देवतर्पण ऋषि तर्पण, दिव्य मानव तर्पण, दिव्य पितृ तर्पण, यम तर्पण, मनुष्य पितृ तर्पण जिसमें स्व गोत्रीय दिवंगत पूर्वजों का नाम गोत्र सहित दर्पण, द्वितीय गोत्र मातामह आदि का, तीसरा आवश्यकता अनुसार इतर दर्पण, भीष्म दर्पण (जिन्होंने अपने वंश चलाने का मोह नहीं किया) फिर देवताओं ब्रह्मा से लेकर वरुण जी तक 6 अरघ्य दान फिर दिशाधीपतियों को पूर्व की ओर से खड़े होकर निर्दिष्ट दिशा में नमस्कार, सूर्य पास्थन, मुख मार्जन स्वतर्पण, भुत यज्ञ पंचवली ( गोवली कुक्कूर वली, काक वली, देवादी बली, चीटियों की निमित्त पिपिलिका बली भोज्य पदार्थ अर्पण) क्षमा प्रार्थना साष्टांग नमस्कार क्रम अनुसार व्यवस्थित कर्मकांड होता है सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर ज्ञात अज्ञात पूर्वजों की निमित्त व्यवस्थित श्रद्धापूर्वक तर्पण पिंडदान एवं आचार्य पूजन का विधान है पूर्वजों की संपत्ति से कुछ अपनी ओर से मिलाकर दान दक्षिणा ब्राह्मण कन्या भोजन वस्त्र आदि दान से हमारे पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं इससे पितृ दोष शांत होकर संतति की उन्नति, धन-धान्य वृद्धि, यश कीर्ति वैभव की बढ़ोतरी होती है।


शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!